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Republic Day 2022-राजपथ पर नजर आएंगी sohrai kohbar पेंटिंग

Republic Day 2022: देश में हर साल गणतंत्र दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. 26 जनवरी 2022 को हमलोग अपना 73वें गणतंत्र दिवस मनाएंगे. पूरे देश को इस दिन का बहुत बेसब्री से इंतजार रहता है. Republic day में सभी प्रकार के सरकारी और निजी जगह में तिरंगा लहराया जाता है। (Republic day 2022)


Sohbrai-and-kohbar-art

 

हर साल की तरह इस साल में (republic day 2022) को भी धूमधाम से तिरंगा फहराया जाता है. इसी कड़ी में हजारीबाग की प्राचीन कलाकृति सोहराई पेंटिंग्स गणतंत्र दिवस के अवसर पर नई दिल्ली के राजपथ पर नजर आएंगी. ये पहली बात होगा जब  गणतंत्र दिवस के मौके पर राजपथ पर झारखंड की किसी लोक कलाकृति की प्रदर्शनी नजर आएगी.


5000 वर्ष पुराना है इतिहास 

सोहराई पेंटिंग्स का इतिहास 5000 सालों से ज्यादा पुराना है. इन्हें आज भी हजारीबाग जिले के बड़कागांव के इस्को गुफा की दीवारों पर देखा जा सकता है. गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली के राजपथ के दोनों ओर की दीवारों पर सोहराई पेंटिंग दिखाए देंगी. ऐसे में हजारीबाग से कई कलाकार इस पेंटिंग्स को दिन-रात एक कर राजपथ के दोनों ओर की दीवारों पर बना रहे हैं. 

जानें क्या है सोहराई-कोहबर कला? (Sohrai kohbar) 

सोहराई ओर कोहबर कला झारखंड की बेहद प्राचीन चित्रकारी है. इसमें गांव की महिलाएं घरों की मिट्टी की दीवारों पर काली औऱ दूधी मिट्टी के साथ कंघी के टुकड़ों से पशु ,पंछी, फूल, फल आदि प्राकृतिक चीजों के चित्र बनाती हैं. आप को जानकारी हैरानी होगी कि इसमें सिर्फ चार प्रकार के रंग लाल, पीली, दूधी और काली मिट्टी का प्रयोग किया जाता है.

इस साल 26 जनवरी को हम अपना 73वां गणतंत्र दिवस मनाएंगे. गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम 23 जनवरी यानी सुभाष चंद्र बोस जयंती से शुरू हो गया  है, जबकि पिछले साल तक यह 24 जनवरी से शुरू होता था. वहीं, इस बार इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति नहीं जली होगी, क्योंकि इसका विलय राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (नेशनल वॉर मेमोरियल) में कर दिया गया है. 


सोहबराई कोहबर के मुख्य बिंदु 

1) सोहराय व कोहबर कला झारखंड की दो मुख्य लोककला है। यह दोनों चित्रकला मानव सभ्यता के विकास को दर्शाती है। 

2) इन दोनों चित्रकला में नैसर्गिक रंगों का उपयोग किया जाता है। यह कला हजारीबाग और चतरा में मुख्य रूप से ज़्यादा प्रचलित है।

3) झारखंड के अनेक ज़िलों में कोहबर एवं सोहराई की समृद्ध परंपरा रही है। संभवत: आज की कोहबर कला झारखंड में पाए जाने वाले सदियों पुराने गुफाचित्रों का ही आधुनिक रूप है। हजारीबाग के कोहबर चित्रकला के चितेरे मुख्यत: आदिवासी हैं। 

3) मिट्टी की दीवारों पर बनाए जाने वाले चित्रण महिलाओं द्वारा बनाए गए हैं। यह चित्रण बहुत ही कलात्मक और इतने स्पष्ट होते हैं कि आसानी से पढ़े जा सकते हैं।

4) कोहबर के चित्रों का विषय सामान्यत: प्रजनन, स्त्री-पुरुष संबंध, जादू-टोना होता है, जिनका प्रतिनिधित्व पत्तियों, पशु-पक्षियों, टोने-टोटके के ऐसे प्रतीक चिह्नों द्वारा किया जाता है, जो वंश वृद्धि के लिये प्रचलित एवं मान्य हैं, जैसे- बाँस, हाथी, कछुआ, मछली, मोर, कमल या अन्य फूल आदि। इनके अलावा शिव की विभिन्न आकृतियों और मानव आकृतियों का प्रयोग भी होता है। ये चित्र घर की बाहरी अथवा भीतरी दीवारों पर पूरे आकार में अंकित किये जाते हैं।

5) हजारीबाग ज़िले के जोरकाठ, इस्को, शंरेया, सहैदा, ढेठरिगे, खराटी, राहम आदि गाँवों में कोहबर चित्रांकन सदियों से होता आ रहा है।

6) सोहराई चित्रों में दीवारों की पृष्ठभूमि मिट्टी के मूल रंग की होती है। उस पर कत्थई राल, गोद (कैओलीन) और काले (मैंगनीज) रंगों से आकृतियाँ’ बनाई जाती हैं। कोहबर एवं सोहराई चित्रों में विभिन्न आदिवासी समूह या उपजाति के अनुसार, थोड़ी भिन्नता पाई गई है।

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